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नज़राना इश्क़ का (भाग : 16)






शाम हो चुकी थी, सूरज ढलने ही वाला था, चहकती हुई चिड़ियों ने आसमान को घेर रखा था, वे सभी उड़ते हुए अपने बसेरों को जा रहे थे। मगर हमेशा चहकते रहने वाला निमय आज जैसे धुंधला पड़ चुका था। ना चाहते हुए भी उसे सुबह जाह्नवी ने जो किया उसका बेहद बुरा लग रहा था। वह खुद को समझाने की लाख कोशिश कर रहा था मगर उसकी हरेक कोशिश नाकाम होती जा रही थी।

'क्यों जानी क्यों? आखिर तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि सारे अमीरजादे एक जैसे होते हैं। माना कि दौलत के नशे में चूर उस शिक्षा ने तुझसे बदला लेने के लिए मुझे तुझसे अलग करने की कोशिश की, पर मैंने उसे वही जवाब दिया जो किसी भी अकड़ रखने वाले को देता। मगर फरी उससे बिल्कुल अलग है, वो तो सौम्यता की प्रतिमूर्ति है, तुझे क्या नजर नहीं आता कि उसने कल किस तरह उस शिक्षा को सुनाया था, आज वह चाहती तो राव सर को सब सच बता सकती थी मगर उसने नहीं बताया.. तुझे क्या नजर नहीं आता.. वो रो रही थी जानी….!' अपने आप में ही जाह्नवी का नाम लेकर खुद को कोसते हुए निमय ने दोनो हाथों से अपना सिर दबाते हुए बुदबुदाया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, वह जाह्नवी से सबकुछ कहना चाहता था मगर उसे पता था फिर उसको बुरा लग जाता, और निमय चाहकर भी उसे हर्ट नहीं कर सकता था।


"काश..! कोई तो होता जिससे मैं अपने दिल की बात बोलकर ये बोझ थोड़ा कम कर पाता, ये लड़की भावनाओ में बहकर कुछ भी बोलने और करने की आदत कब छोड़ेगी…!" न चाहते हुए भी निमय के आँखों के सामने बार बार वही दृश्य घूम जाता जब जाह्नवी फरी पर बरस रही थी। उसके आँखों के सामने वह तस्वीर उभर रही थी जब फरी उसके बाहों में थी, उसे महसूस हो रहा था मानो उसने अपनी सारी ज़िंदगी, अपनी हर खुशी , अपनी हर ख्वाहिश को अपने बाहों में पा लिया मगर थोड़े ही देर में वह ख्वाब कांच सा बिखर गया और उसके दिल को खुरचने लगा, उसका भावुक दिल लहूलुहान सा हो गया और आँखों के रस्ते आंसू छत पर टपक पड़ी।

"ओये क्या कर रहा है घोंचू…!" तेजी से सीढ़ियों पर चढ़ते हुए जाह्नवी ने हंसते कहा, वह रोज की तरह बिल्कुल सामान्य थी। "तू रो रहा है?" जाह्नवी ने जब उसको सिर झुकाए हुए बैठे देखा तो पूछा।

"अरे नहीं…! बस हल्का सा सिर दर्द कर रहा था।" निमय ने सामान्य होने की पूरी कोशिश करते हुए सामान्य स्वर में जवाब दिया।

"तो जाकर दवा लेना ना, यहां किस बात का मातम मना रहा है? इनका देखो सिर दर्द कर रहा है और यहां बैठे हुए हैं..!" जाह्नवी ने उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा। निमय का हाथ सामान्य से अधिक गर्म महसूस हो रहा था, शायद उसे हल्का बुखार था। "तुझे तो बुखार है, छत पर आने को कौन बोला था? चल मैं बाम लगा देती हूँ, दवाई खाकर सो जा, जल्दी से ठीक हो जाएगा।" जाह्नवी ने उसे जबरदस्ती खींचते हुए प्यार से कहा।

"तू चल मैं आता हूँ…!" निमय ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।

"देख लो जनाब को, बुखार है, सिर दर्द है फिर भी बड़ईगिरी दिखाना है, याद रखना बस तीन मिनट ही बड़ा है मुझसे, मैंने कहा दिया न चल.. मतलब चल बस…!" जाह्नवी अपनी पूरी ताकत से खींचते हुए तल्ख लहजें में कहा, उसके स्वर में निमय के लिये चिंता स्पष्ट नजर आ रही थी। आखिर उसके जिद के आगे निमय को हारना ही पड़ा वह उठ खड़ा हुआ।

'काश..! तू इसी तरह अपने भाई के दिल की इस बात को भी समझ जाती मेरी बहन…!' वह जाह्नवी की आँखों में देखता रहा।

"ले शर्मा गयी मैं…!" जाह्नवी ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढकते हुए कहा। "अब तो चल न…!" उसने फिर जिद की, निमय एक पल को अपनी सारी चिंताएं, व्यथाएँ भूल गया, उसके होंठो पर हल्की सी मुस्कान आ गयी।

"हाँ चल…!" निमय ने खुद को सामान्य कहते हुए कहा। दोनो निमय के कमरे में चले गए, जाह्नवी उसे दवाई देने के बाद लेटने को बोलकर, उसके माथे पर बाम लगाकर सिर दबाने लगी, हर थपकी के साथ निमय के दिल में तूफान बनी उलझने साबुन के झाग की तरह शांत होने लगीं। थोड़ी ही देर बाद निमय गहरी नींद में चला गया।


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फरी आज बेहद उदास थी, वह लगातार कोशिश कर रही थी कि खुद को सामान्य बनाये रख सके मगर फिर भी आँखे नम होने से नहीं रोक पा रही थी। हाथ में चाय का कप लिए अनेकों ख्यालों में डूबी वह न जाने कितनी देर तक खड़ी रही, इसका एहसास उसे जब हुआ तब  तक चाय ठंडी होकर पानी हो चुकी थी, फरी ने अपने माथे पर हाथ मारा और फिर किचन की ओर बढ़ गयी। उसने खुद को फ़ोन में उलझाने की कोशिश की, मगर नाकाम रही। आज उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, उसके कानों में बार बार वही शब्द गूंज रहे थे, जो उसके दिल को कचोट रहे थे। थक हार कर वह डायरी लिखने बैठ गयी।

"हे डायरी…! 

आज तो मैं बिल्कुल अकेली हूँ..! तुम जानती हो मैं सबकी बातों पर ध्यान नहीं देती, न ही मैं किसी की बातों पर ध्यान देना चाहती हूं, पर ना जाने क्यों मेरे दिल को उस जाह्नवी की बातें चुभ सी रही हैं। पता है बड़े साहब ने शायद इस शहर में भी अपनी बसेस चलाना शुरू कर दिया, मगर मुझे उनकी बसों पर नहीं जाना। हो सकता है कि वो कुछ ही दिनों में शहर की आधी से ज्यादा चीजें खरीद लें मगर मेरे दिल में अपने लिए जगह कभी नहीं खरीद सकते।

यही सब सोचते हुए मैं दूसरे बस स्टॉप की तरफ बढ़ी मगर मैं ख्यालों में इतना गुम हो गई थी कि मुझे अपनी ओर आती मौत भी नज़र न आई, तभी निमय किसी फरिश्ते की तरह आया और मुझे अपनी बाहों में समेट ले गया। माँ के बाद दूसरा कोई ऐसा मिला जिसकी बाहों में होने पर मेरे दिल को इतना सुकून मिला कि पूछो मत… दिल चाहता था कि वक़्त वहीं ठहर जाए पर वक़्त मेरी जायदाद थोड़ी है.. नहीं ठहरा! तभी उसकी बहन वहां आ गयी, वो चला गया और मैंने जल्दी जल्दी में उसे थैंक यू भी नहीं बोला। कॉलेज में जब मुझे एहसास हुआ कि मुझे उसका शुक्रिया अदा कर देना चाहिए तो मैं उसकी सीट पर चली गयी।

फिर उसकी बहन को न जाने क्या हुआ..! शायद वह अपने भाई को लेकर कुछ ज्यादा ही पोजेसीव है, होगी भी क्यों नहीं उसकी खुशकिस्मती है जो उसे इतना बेमिशाल इंसान भाई के रूप में मिला है। मगर उसने मुझे अमीरजादी कहा, ये शब्द मुझे दुनिया की सबसे गंदी गाली की तरह लगता है, और वह यहीं नहीं रुकी उसने मुझे उस घमंडी लड़की शिक्षा से कम्पेयर भी किया, उसने तो यह तक कह दिया कि मैं उसका भाई छीन लुंगी।

तुम्हीं बताओ न डायरी.. जिसका नियति ने खुद ही सबकुछ छीन लिया हो वह किसी का क्या छिनेगी..! मुझे बहुत चुभ रहा है डायरी..! मैं इस दर्द को नहीं सह पा रही बताओ मुझे मैं क्या करूँ……!??

अच्छा ठीक है, अब से मैं बस पढ़ाई से मतलब रखूंगी, बाकी किसी से कोई मतलब नहीं रखना मुझे.. प्लीज बड़े साहब आप भी मुझपर हसन करना, कुछ दिन तक तंग करना बंद कर दो प्लीज….!

मुझसे कुछ भी सहन नहीं हो रहा डायरी.. जाने क्यों मैं कमज़ोर होते जा रही हूँ, पर मैं अब कमज़ोर नहीं पड़ूँगी, सबसे तो दूर ही रहीं हूँ, अब एक और से.. और उसे तो मैं ठीक से जानती भी नहीं, बात भी बस एक दो बार ही हुई है।


गुड नाईट डायरी… मैं अपने साथ तुम्हें भी कितना तंग करती रहती हूँ। माफ करना…!" 

डायरी बंदकर उसे समेटते हुए टेबल के दूसरे कोने में रखकर फरी वही सो गई, उसने कुछ भी खाया पिया हुआ नहीं था, अंदर से जैसे भुख प्यास की इच्छा मर सी गयी थी।

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अगले दिन कॉलेज में..!

फरी अपनी सीट पर बैठी हुई एक किताब खोलकर पढ़ रही थी, उसने किताब में अपना चेहरा इतना घुसा लिया था कि कोई बाहर से उसका चेहरा नहीं देख सकता था। जाह्नवी और निमय अभी तक नहीं आये थे, फरी आज उनके बस से पहले की बस से चली आयी थी। तभी किसी ने फरी के किताब को हटाते हुए टेबल को ठकठकाया, फरी ने उसकी ओर देखा वह विक्रम था।

"हे… मॉर्निंग!" विक्रम ने अपना बैग उसकी सीट पर रखकर कहा।

"गुड मॉर्निंग…! आप कौन?" फरी ने सवालियां निगाहों से उसकी ओर देखा। "अरे हाँ याद आया थैंक यू..!" फरी सामान्य भाव से बोली।

"सॉरी!" विक्रम ने सिर झुकाते हुए कहा।

"क्या हुआ?" फरी ने न चाहते हुए भी पूछ लिया।

"नथिंग! कुछ चीजों के लिए कोई माफी नहीं होती क्योंकि सभी को खुद का नजरिया अच्छा लगता है, खुद की बात के पीछे एक आधार होता है। जानता हूँ तुम्हारा दिल बहुत दुखा है, हो सके तो माफ कर देना..!" विक्रम ने सिर झुकाए धीमे स्वर में कहा, उसकी आँखों में नमी गहराई तक नजर आ रही थी।

"आप क्यों ऐसा बोल रहे हैं, जो हुआ सो हुआ, वैसे भी मुझे यहां बस पढ़ाई से मतलब रखना है।" फरी ने भावहीन स्वर में कहा।

"बस ऐसे ही…!" विक्रम मुस्कुराते हुए बोला। "मेरा नाम विक्रम है…!" कहते हुए विक्रम उसकी सीट पर बैठ गया।

"आप यहां क्यों बैठ रहे हैं यह आपकी सीट नहीं है..!" फरी ने उसे घूरते हुए पूछा।

"अरे हाँ याद आया, सुबह मम्मी ने इतना अच्छा खाना बनाया था पर मैं तो जल्दबाज़ी में खाना ही भूल गया। अरे वाह मम्मी ने तो टिपिन रखा हुआ है, चलो अब नाश्ता कर ही लेते हैं।" फरी की बात को अनसुना करते हुए विक्रम अपने बैग से अपनी टिपिन निकालता हुआ बोला।

"आप यहां क्या कर रहे हैं?" फरी ने दुबारा पूछा।

"आपको खाना है? ऐसा लग रहा है जैसे आपने कल से कुछ न खाया हो, वैसे तो मैं अपना खाना शेयर नहीं करता पर आप सीट शेयर करे तो इस लजीज खाने में आपका हिस्सा भी हो सकता है।" विक्रम ने अपनी टिपिन खोलते हुए कहा। खाना वाकई बेहद शानदार बना था, टिपिन खोलते ही खाने की खुशबू पूरे कमरे में फैल गयी।


"देखिए मिस्टर विक्रम! ये ज्यादा हो रहा है, आप मेरे कौन हैं जो मैं आपसे कुछ शेयर करूँ? प्लीज अपने सीट पर जाइये…!" फरी ने विक्रम पर भड़कते हुए कहा।

"बस यही बात है ना?" विक्रम ने सिर झुकाए हुए पूछा। मगर फरी की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। "मेरी कोई बहन नहीं है, मेरी बचपन से ख्वाहिश थी कि मैं और मेरी बहन आपस में झगड़े करें, एक ही थाली में खाएं, एक दूसरे के सुख दुख के साथी बनें, एक दूसरे को सताए, रूठे, मनाये…! मैंने आज तक ये बात किसी से नहीं कही है पर आपसे कह रहा हूँ और इसके बाद कभी किसी और लड़की को नहीं कहूंगा। क्या मुझे मेरी बहन दे सकती हूँ, खून के रिश्ते से ना सही, पर दिल के रिश्ते से….!" बोलते बोलते विक्रम बेहद भावुक हो गया, उसकी आँखों से आंसुओ की बूंद टपककर नीचे टेबल पर जा गिरी। फरी काफी देर तक सोच में डूबी रही, उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, विक्रम उठकर अपनी सीट पर जाने को तैयार हुआ क्योंकि वह उसे और ज्यादा परेशान करना नहीं चाहता था, वह एक हाथ बैग लटकाए, उसे में टिपिन पकड़े वहां जाने को हुआ तभी फरी ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"भाई….!" फरी ने बेहद धीमे स्वर में कहा। 

"क्या कहा फिर से बोलो न प्लीज..!" विक्रम वही खड़ा हो कर रह गया।

"भाई मेरे…!" फरी ने उसका हाथ पकड़े हुए प्यार से कहा।

"एक बार फिर से…!" विक्रम के कान बार बार यह शब्द सुनने को तरस रहे थे।

"बस ना भाई..! बैठ जा अब.. कितना बुलवाएगा अपनी बहन से..!" फरी ने उसे खींचकर बिठाने की कोशिश करते हुए कहा।

"ऐसे नहीं बैठूंगा, पहले तुम कहो कि मेरे हाथ से खाना खाओगी तभी…! कोई ना नुकुर नहीं चलेगा हां..!!" विक्रम ने बैग रखते हुए टिपिन पकड़कर जिद्दी भाव से बोला, फरी ने सिर हिलाते हुए हाँ में इजाजत दी। विक्रम बड़ी खुशी से उसे खिलाने लगा।

"पता है मैंने मम्मी से कहा था कि आज मैं ये खाना उनकी बिटिया को खिलाऊंगा, चलो आखिर मेरा वादा तो पूरा हुआ!" विक्रम ने उसे आखिरी कौर खिलाता हुआ खुशी से बोला। वह आज बेहद खुश नजर आ रहा था।

"पागल कहीं का!" फरी के मुँह से अनायास ही निकला।

"पगली कहीं की..!" विक्रम ने फरी का मुंह धोकर पानी पिलाते हुए बोला, तभी जाह्नवी ने क्लास में प्रवेश किया।


क्रमशः...


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8 Comments

🤫

27-Feb-2022 01:51 PM

फाइनली फरी को भी ऐसा कोई मिला जिससे वो अपने मन की बात कह सकती है। कुछ इमोशनल सीन के बाद अच्छा पढ़ने को मिला।

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धन्यवाद 🥰❤️😀

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अफसाना

20-Feb-2022 04:32 PM

बहुत बढ़िया..

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शुक्रिया

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Pamela

03-Feb-2022 03:04 PM

Nicely written

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Thank you

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